सोनू कुमार तिवारी
चर्चा में क्यो ?
हाल ही में कुछ राज्यो में राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NEP) के त्रिभाषा सूत्र फार्मूले को लेकर विवाद मचा है।
तमिलनाडु- तमिल सरकार ने त्रिभाषा सूत्र या हिंदी को भाषा थोपने का प्रयास माना है वही तमिल- सरकार ने केंद्र सरकार पर यह आरोप लगाया है कि त्रिभाषा फॉर्मूला लागू न करने से केंद्र ने हमारे राज्य की 2152 करोड़ की राशि रोक दी है जो कि “समग्र शिक्षा अभियान” के तहत मिलनी थी।
महाराष्ट्र- महाराष्ट्र सरकार ने 16 अप्रैल 2025 को आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि: “2025-26 शैक्षणिक सत्र से कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाया जाएगा।” विपक्ष इसे भाषा थोपने और अनुच्छेद 350 A के खिलाफ बताया है।
परीक्षा के लिए इसकी प्रासंगिकता कैसे है ?
प्रीलिम्स के लिए- अनुच्छेद 350A और आठवीं अनुसूची ,NEP के प्रावधान
मुख्य परीक्षा के लिए- GS पेपर 1 के society खण्ड के अंतर्गत topic
“भाषाई पहचान और संस्कृतिक विविधता के सामाजिक प्रभाव” से आप रिलेट कर सकते हो उदाहरण के लिए प्रश्न
“भारत में भाषा नीति अक्सर केंद्र और राज्यों के बीच तनाव का केंद्र रही है।” राजभाषा के मुद्दे पर केंद्र और राज्यों के बीच हाल के संघर्षों के संदर्भ में चर्चा कीजिए। 【UPSC-2016】
चलिए वापस लौटते है topic पर-
त्रिभाषा सूत्र क्या है ?
त्रिभाषा सूत्र की अवधारणा पहली बार 1968 में प्रस्तुत की गई थी। जिसका उद्देश्य छात्रों को तीन भाषाओं में दक्ष बनाना था
1. मातृभाषा या लोकल भाषा
2. हिंदी
3. अंग्रेजी
2020 में इसे पुनः राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रस्तुत किया गया है (कुछ संसोधन के साथ)। NEP 2020 के अनुसार: प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से 5): बच्चों को मातृभाषा/स्थानीय भाषा में पढ़ाने की सिफारिश की गई है। कक्षा 6 से 10 या 12 वीं तक त्रिभाषा सूत्र को अपनाने पर ज़ोर दिया गया है।
क्या यह राज्यो के लिए बाध्यकारी है ?
नही, इससे जुड़ी दो महत्वपूर्ण बात –
1. कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी, यह स्पष्ट कहा गया है।
2.इसकी कानूनी या राष्ट्रीय स्तर पर कोई बाध्यकारी समय-सीमा नहीं है — यह एक नीति निर्देश है, कानून नहीं। अर्थात हम कह सकते है कि “त्रिभाषा सूत्र एक शैक्षिक नीति है, जो विद्यालयी स्तर (कक्षा 6 से 12 तक) में भाषाई विविधता, राष्ट्रीय एकता और भाषाई समावेशन को बढ़ावा देने के लिए तैयार की गई है “
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदु ?
- स्कूल शिक्षा में बदलाव (5+3+3+4 संरचना):
5 साल: बुनियादी स्तर (3 साल आंगनवाड़ी + कक्षा 1-2)
3 साल: प्राथमिक (कक्षा 3-5)
3 साल: माध्यमिक (कक्षा 6-8)
4 साल: उच्च माध्यमिक (कक्षा 9-12)
2. मातृभाषा में पढ़ाई (कक्षा 5 तक) – जहाँ संभव हो।
3. त्रिभाषा सूत्र – भाषा थोपी नहीं जाएगी।
4. स्कूलों में कोडिंग और व्यावसायिक शिक्षा (6वीं कक्षा से)।
5. 10वीं और 12वीं बोर्ड के स्वरूप में सुधार।
6. उच्च शिक्षा में सुधार:
UG प्रोग्राम 4 वर्ष का
Multiple exit-entry विकल्प
Academic Bank of Credits (ABC)
MPhil खत्म
एकल रेगुलेटर: HECI
7. राष्ट्रीय शैक्षिक तकनीकी मंच (NDEAR/NETF)
8. Gross Enrollment Ratio बढ़ाकर 2035 तक 50% करना।
9. National Testing Agency (NTA) द्वारा सामान्य प्रवेश परीक्षा।
10. शिक्षक प्रशिक्षण और योग्यता में सुधार।
Note- NEP 2020 आजाद भारत की तीसरी शिक्षा नीति है, प्रथम बार कोठारी समिति के recommendation पर 1968 में इंदिरा गांधी के समय लागू किया गया । दुसरी बार 1986 में तीसरी बार कस्तूरी रंजन समिति के द्वारा 2020 में सरकार को सौंपी गई और इसे लागू किया गया।
संविधान में भाषा से जुड़े प्रावधान और अधिकार-
संविधान में भाषा से जुड़े प्रावधान भारत की भाषाई विविधता को संरक्षित करने और संघ तथा राज्यों के बीच भाषा के उपयोग को सुव्यवस्थित करने हेतु बनाए गए हैं। ये प्रावधान मुख्य रूप से भाग XVII (अनुच्छेद 343 से 351) और आठवीं अनुसूची में वर्णित हैं।आइये इन्हें एक सरसरी निगाह से देखते है-
1.अनुच्छेद 343: राजभाषा हिंदी
भारत की राजभाषा हिंदी (देवनागरी लिपि में) होगी। अंकों के लिए अंतरराष्ट्रीय रूप (1, 2, 3…) अपनाया जाएगा।
-अंग्रेज़ी का प्रयोग 15 वर्षों तक सहायक भाषा के रूप में किया जाना था (1950 से गिनकर), किंतु इसे आज भी जारी रखा गया है।
2. अनुच्छेद 344: राजभाषा आयोग और समिति
राजभाषा के प्रयोग की समीक्षा के लिए एक आयोग और संसद समिति की व्यवस्था।
3. अनुच्छेद 345: राज्यों की भाषा
राज्य विधान मंडल अपनी राजकीय भाषा निर्धारित कर सकता है (हिंदी, या कोई अन्य भाषा)।
4. अनुच्छेद 346: राज्य और केंद्र के बीच संप्रेषण
(मतलब सूचना या खत भेजने के लिए किस लैंग्वेज का यूज होगा) केंद्र और राज्य के बीच तथा विभिन्न राज्यों के बीच संप्रेषण की भाषा सामान्यतः हिंदी होगी, जब तक कि अन्यथा न हो।
5. अनुच्छेद 347: भाषाई अल्पसंख्यकों की मान्यता
यदि किसी भाषा को अल्पसंख्यक समुदाय के पर्याप्त लोग बोलते हैं, तो राष्ट्रपति उस भाषा को मान्यता दे सकता है। राज्य सरकारें उच्च न्यायालय में हिंदी या किसी अन्य भाषा के प्रयोग की अनुमति राष्ट्रपति से ले सकती हैं।
6. अनुच्छेद 348: न्यायपालिका में भाषा- सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय और विधायी दस्तावेजों में अंग्रेज़ी का प्रयोग किया जाएगा।
7. अनुच्छेद 349: संसद में भाषा उपयोग पर विशेष प्रतिबंध
संसद भाषा से संबंधित कोई विधेयक तभी पारित कर सकती है जब राष्ट्रपति की सिफारिश हो।
8. अनुच्छेद 350: शिकायत का अधिकार
नागरिकों को सरकार के समक्ष अपनी मातृभाषा में शिकायत करने का अधिकार है।
9. अनुच्छेद 350A: प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में
राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त हो।
10. अनुच्छेद 350B: भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी
राष्ट्रपति एक अधिकारी नियुक्त करेगा जो भाषाई अल्पसंख्यकों के संरक्षण की निगरानी करेगा।
11. अनुच्छेद 351: हिंदी के विकास हेतु निर्देश
केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह हिंदी भाषा के विकास के लिए कार्य करे, ताकि वह भारत की संपर्क भाषा बन सके और उसमें भारत की अन्य भाषाओं की श्रेष्ठता भी सम्मिलित हो।
आठवीं अनुसूची की भाषा –
प्रारंभ में 14 भाषाएँ थीं, अब 22 भाषाएं सूचीबद्ध हैं। असमिया, बंगाली, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, (कोंकणी,मणिपुरी और नेपाली-1992,71 वें संसोधन से), मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी(1967), तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली.
नवीनतम शामिल भाषाएँ- (92वां संशोधन, 2003):बोडो, डोगरी, मैथिली, संताली
क्षेत्रीय भाषावाद के संदर्भ में सरकारों के बीच संघर्ष का क्या हो समाधान ?
राष्ट्रीय स्तर के परीक्षाओं में ,स्थानीय प्रशासन और न्याय प्रणाली में आमजन की भाषा अर्थात स्थानीय भाषा को वरीयता दिया जाना चाहिए। 8 वीं अनुसूची को राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग नही की जानी चाहिए तथा अन्य उपयुक्त भाषाओं को जोड़ने पर विचार करना जरूरी है। छात्रों को अन्य भाषाओ से जुड़ने के लिए इंटरेक्टिव प्रोग्राम चलाया जा सकता है क्योकि छात्र ही भविष्य के प्रशासक के रूप में देश के विभिन्न क्षेत्रों के पॉलिसी मेकिंग में भाग लेंगे।
निष्कर्षतः
भारत की भाषाई विविधता उसकी आत्मा है, किंतु इस आत्मा को एकता का स्वरूप देना एक चुनौती भी है। भाषा विवादों से निपटने का उपाय न तो थोपना है, न ही विरोध करना — अपितु यह है कि सभी भाषाओं को समान सम्मान और अवसर दिया जाए, ताकि भारत ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की संकल्पना को व्यवहार में उतार सके।”

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