द्वारा – शिवानी कर्णवाल ( M. Sc , Ex. HOD KLGM Saharnpur)
【 प्रासंगिकता- यह टॉपिक स्पष्ट रूप से पंचायती राज, विकेंद्रीकरण और स्थानीय शासन से जुड़ा है। इस टॉपिक से UPSC,UP PSC and BPSC के प्रीलिम्स ,मेंस तथा निबंध में प्रश्न पूछे जाते रहे है। उदाहरण के लिए कुछ प्रश्न-
“सच्चा लोकतंत्र ऊपर से नहीं नीचे से आता है।”(UPSC Essay Paper, 2015)
स्थानीय स्वशासन और सुशासन”(UPPSC Mains Essay Paper )
“पंचायती राज व्यवस्था: उपलब्धियाँ एवं चुनौतियाँ” (BPSC Mains, GS-IV में पूछा गया विश्लेषणात्मक प्रश्न) शेष प्रश्न अंत मे…. चलिए ,लौटते अब अपने टॉपिक पर】
संदर्भ-
24 अप्रैल को हर साल पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न मानकों पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले पंचायतों को भारत सरकार अवार्ड देकर सम्मानित करती है ताकि लोकतंत्र के जमीनी स्तर पर विकास के कार्य बेहतर ढंग से जारी रहे। इस वर्ष प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा सर्वश्रेष्ठ पंचायतों को बिहार के मधुबनी में आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किया जाएगा। छह पुरस्कार विजेता ग्राम पंचायतों में से तीन – मोतीपुर (बिहार), दाववा एस (महाराष्ट्र) और हाटबद्रा (ओडिशा) – का नेतृत्व महिला सरपंच करती हैं जो जमीनी स्तर पर समावेशी नेतृत्व को दर्शाता है। आइये इस विषय पर चर्चा करते है कि गाँधी के सपनो का ग्राम स्वराज कितना सफल रहा , पंचायती राज व्यवस्था के 30 से अधिक वर्ष तो बीत गए लेकिन क्या विकास हुआ ,क्या चुनौतियां है , इन सभी विषयों को क्रमानुसार देखते है।
क्या है पंचायती राज व्यवस्था ?
गाँधी जी का हमेशा से मानना था कि गाँवों में आत्मनिर्भरता और स्वराज होना चाहिए। उनका ख्याल था कि केंद्र और राज्य सरकारों की ताकत को गाँवों में बाँटना चाहिए ताकि लोग खुद अपने फैसले ले सकें और अपनी ज़िंदगी को बेहतर बना सकें।”ग्राम स्वराज” यानी गाँव में ही सरकार होनी चाहिए, गाँव वाले खुद अपनी ज़िंदगी चलाएँ। अब, पंचायती राज उसी का तरीका है।1993 में पंचायती राज को सवैंधानिक दर्जा मिला, जिससे पंचायतों को अधिकार और जिम्मेदारी दी गई।
पंचायती राज का विकास-पथ: विचार से व्यवस्था तक
भारत में पंचायती राज कोई नई चीज़ नहीं है, ये तो सदियों से गाँव की मिट्टी में जमी हुई परंपरा रही है। पहले जब कोई संविधान नहीं था, तब भी गाँवों में पाँच बुज़ुर्ग बैठकर लोगों के झगड़े सुलझा लेते थे। इन्हें ही पंच परमेश्वर कहा जाता था। गाँव की हर समस्या का हल बिना थाने–कचहरी के, आपसी सलाह से निकलता था। प्राचीन ग्रंथों, जैसे महाभारत और मनुस्मृति में भी पंचायत जैसी संस्थाओं का ज़िक्र मिलता है। चौपाल, खाप, जाति पंचायतें — सब एक ही परंपरा की कड़ियाँ थीं।
आज़ादी के बाद से ही पंचायती राज व्यवस्था को बढ़ावा देने की बात होती रही।पंचायती राज की शुरुआत तो 1959 में हो गई थी, लेकिन ये व्यवस्था पूरे देश में समान रूप से लागू नहीं हो रही थी और कई जगहों पर ये नाम मात्र की थी। सरकारें चाहती थीं कि ये व्यवस्था चले, पर कोई कानूनी बाध्यता नहीं थी, इसलिए जैसे-जैसे समस्याएँ सामने आईं, समय-समय पर समितियाँ बनाई जाती रहीं।
इसके लिए समय समय पर कई समितियों का गठन हुआ। जैसे-
समिति | गठन | सिफारिश |
बलवंत राय मेहता समिति | 1957 | तीन-स्तरीय पंचायती राज की सिफारिश (ग्राम, ब्लॉक, जिला) 1959 में राजस्थान से शुरुआत हुई। |
अशोक मेहता समिति | 1978 | दो-स्तरीय प्रणाली (ग्राम और मंडल), पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश |
जी.वी.के. राव समिति | 1986 | पंचायतों को विकास योजनाओं का मुख्य केंद्र बनाने की सिफारिश |
एल.एम. सिंघवी समिति | 1987 | पंचायतों को संवैधानिक मान्यता देने, ग्रामसभा को मजबूत करने की अनुशंसा। बिना संविधान में जगह दिए, पंचायतें टिकाऊ नहीं बन सकती थीं। इसलिए: एल.एम. सिंघवी समिति (1987) ने पहली बार साफ कहा कि पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देना चाहिए, नहीं तो ये कभी मज़बूत नहीं होंगी। इन्हीं के आधार पर राजीव गांधी सरकार ने 64वां संविधान संशोधन बिल लाया (1989 में), जो लोकसभा से पास हुआ पर राज्यसभा में अटक गया। बाद में नरसिंह राव सरकार ने संशोधित रूप में फिर बिल लाया — और 1992 में 73वां संविधान संशोधन अधिनियम पास हुआ लेकिन लागू हुआ 1993 से। |
पंचायती राज: संवैधानिक प्रावधान –
(A) ग्रामीण क्षेत्रो के लिए पंचायती राज व्यवस्था–
भारत में पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा प्रदान किया गया, जो 24 अप्रैल 1993 से लागू हुआ।इस संशोधन से भाग IX (अनुच्छेद 243 से 243-O) तथा ग्यारहवीं अनुसूची (29 विषय) संविधान में जोड़े गए।संविधान ने पंचायती राज के त्रिस्तरीय ढाँचे (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद) की व्यवस्था की। ग्राम सभा (अनुच्छेद 243-A) को स्थानीय स्वशासन की आधारभूत इकाई माना गया। पंचायतों के चुनाव हर 5 वर्ष में कराना अनिवार्य किया गया, जिसकी ज़िम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोग (अनुच्छेद 243-K) को सौंपी गई।अनुच्छेद 243-D के तहत SC/ST और महिलाओं (1/3 आरक्षण) के लिए सीटें आरक्षित की गईं। पंचायतों को 29 विषयों पर योजनाएँ बनाने का अधिकार दिया गया (जैसे कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि)। इनके वित्तीय सशक्तिकरण हेतु राज्य वित्त आयोग (अनुच्छेद 243-I) का गठन प्रत्येक 5 वर्ष में आवश्यक है।
(B) शहरी क्षेत्रों के लिए पंचायती राज व्यवस्था-
तकनीकी रूप से पंचायती राज केवल ग्रामीण क्षेत्रों में लागू होता है लेकिन इसका स्वरूप अन्य नामो से हर क्षेत्र में है।शहरी क्षेत्रों के लिए अलग व्यवस्था है जिसे नगरपालिका शासन व्यवस्था कहा जाता है, जिसे 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा संवैधानिक मान्यता दी गई थी।74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा शहरी निकायों को संवैधानिक दर्जा मिला, जो 1 जून 1993 से लागू हुआ। इससे भाग IX-A (अनुच्छेद 243-P से 243-ZG) और 12वीं अनुसूची (18 विषय) जोड़ी गई।तीन प्रकार के शहरी निकाय हैं — नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम।
कार्यकाल: 5 वर्ष | चुनाव निकाय: राज्य निर्वाचन आयोग (243-ZA)
आरक्षण: SC/ST + महिलाओं के लिए (1/3) | वित्त आयोग: अनुच्छेद 243-Y
इन निकायों को शहरी नियोजन, जल, सफाई, स्वास्थ्य जैसे विषय सौंपे गए हैं।
(C) अनुसूचित क्षेत्रो के लिए पंचायती राज व्यवस्था-
5वीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज PESA अधिनियम (1996) द्वारा लागू किया गया। यह राज्य सरकारों को विशेष प्रावधान के साथ पंचायतों का संचालन करने की अनुमति देता है। अनुच्छेद 243-M में इन क्षेत्रों के लिए अलग व्यवस्था का उल्लेख है।PESA से स्थानीय संसाधनों पर अधिकार, ग्राम सभा का अधिकार, और खनिज, जल, वन पर स्वायत्तता प्रदान की गई है। PESA (1996) का उद्देश्य इन क्षेत्रों में स्थानीय शासन को सशक्त बनाना है।
सरकार इस दिशा में क्या प्रयास करी है?
73वाँ संशोधन (1992) से सशक्त पंचायतों को मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण), प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वच्छ भारत मिशन, मिड डे मील, जल जीवन मिशन, और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रमुख भूमिका मिली। पंचायतें ग्रामसभा (243A) के माध्यम से लाभार्थियों का चयन व निगरानी करती हैं। e-Panchayat MMP ने पंचायतों के डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया।
राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA-2018) व RGSA 2.0 (2022-26) के तहत प्रशिक्षण, क्षमता विकास, और बुनियादी ढांचे पर बल दिया गया। 15वाँ वित्त आयोग (2.36 लाख करोड़) ने वित्तीय और तकनीकी सशक्तिकरण किया। PESA Act (1996) आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम स्वशासन का आधार है। आज 2.5 लाख पंचायतें, 50% महिला आरक्षण के साथ लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कर रही हैं।
पंचायती राज व्यवस्था का मूल्यांकन-
पंचायती राज व्यवस्था के 30 से ज्यादा वर्ष हो चुके हैं। वर्तमान समय में लगभग 2.5 लाख पंचायतें और नगरपालिकाएं हैं। वहीं इस प्रणाली के अंतर्गत करीब 32 लाख प्रतिनिधि कार्य कर रहे हैं। अगर हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि पंचायती राज प्रणालियों के इतने वर्षों में देश में क्या बदलाव हुए हैं तो हम पाते हैं कि सबसे पहले तो इसने लोकतांत्रिक मूल्यों, राजनीतिक सहभागिता को भूमि स्तर तक पहुँचा दिया है। अब समाज के हर पिछड़े वर्ग में भी राजनीति में रुचि लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। राजनीति को एक करियर के रूप में देखने लगे हैं। आँकड़े भी स्पष्ट करते हैं कि आज करीब एक लाख से ज्यादा पंचायतों के प्रतिनिधि समाज के पिछड़े वर्ग से आते हैं। पंचायतों में आरक्षण की व्यवस्था लागू कर देने से महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि हुई है। लगभग 20 से अधिक राज्यों ने पंचायती चुनाव में 50% तक आरक्षण महिलाओं के लिए कर दिया है। इन सभी वजहों से जातिगत भेदभाव, लैंगिक भेदभाव, महिलाओं के शोषण में व्यापक कमी आई है। यह नारी सशक्तिकरण और दलित विकास के मार्ग में एक मील का पत्थर कहा जा सकता है। कई राज्यों में जिनमें महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र शामिल हैं, वहाँ महिला प्रतिनिधियों को अनिवार्य बना दिया गया है। स्थानीय स्तर की सरकार होने की वजह से गाँवों में सड़क, बिजली, अस्पताल, प्राथमिक शिक्षा केन्द्र, तालाब, पाउडर, लघु उद्योग, पेयजल तथा स्वच्छता में वृद्धि हुई है।
किंतु इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद आज भी सुदूर इलाकों तक वित्तीय समावेशन, संचार, बिजली, शिक्षा की कमीयाँ हैं। लोगों तक सरकारी लाभ पहुँचाने में अत्यधिक देरी लगती है। हालाँकि केन्द्र एवं राज्य सरकार पंचायती राज की स्वायत्तता में बिना हस्तक्षेप किए कई कल्याणकारी योजनाएँ चला रही हैं जैसे—आयुष्मान भारत योजना, किसान सम्मान निधि योजना, जन धन खाता आदि। इन सभी योजनाओं से पंचायतों का सशक्तिकरण होगा, गाँव व नगर विकसित होंगे। महात्मा गाँधी ने कहा था कि “गाँवों के विकास किए बगैर भारत के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है।” पंचायतें हमारे देश के विकास की रीढ़ की हड्डी हैं।
Prelims PYQs
Que 1. पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की जिम्मेदारी किसकी होती है?
(A) भारत निर्वाचन आयोग
(B) राज्य सरकार
(C) राज्य निर्वाचन आयोग
(D) जिला कलेक्टर
【up psc-2015】
सही उत्तर: (C) राज्य निर्वाचन आयोग
Que 2. ग्राम सभा क्या होती है?
(A) ग्राम पंचायतों की कार्यकारिणी
(B) ग्राम के सभी मतदाताओं की एक सभा
(C) राज्य सरकार की एक उप-समिति
(D) पंचायत समिति का एक हिस्सा। 【UPSC pre】
सही उत्तर: (B)
Que 3. प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
राज्य निर्वाचन आयोग, पंचायतों और नगर निकायों के चुनाव कराने के लिए उत्तरदायी है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
A) केवल 1 और 2
B) केवल 1 और 3
C) केवल 2 और 3
D) सभी 1, 2 और 3
उत्तर: B) केवल 1 और 3
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