– सोनू कुमार तिवारी
प्रासंगिकता-
GS Paper II (IR) के तहत भारत के पड़ोसी देशों से संबंध एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जिसमे भारत-पाक रिश्तों का अध्ययन करना होता है। इस संदर्भ में आपको प्रीलिम्स के लिए महत्वपूर्ण समझौते आदि पर फोकस करना चाहिए। जबकि मुख्य परीक्षा में जीएस और निबंध के लिए संतुलित दृष्टिकोण के साथ विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण रखें। उदाहरण के लिए एक प्रश्न –
आतंकी गतिविधियाँ और आपसी अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को प्रभावित किया है। खेल और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी सौम्य शक्ति के उपयोग से दोनों देशों के बीच सद्भावना उत्पन्न करने में कितनी मदद मिल सकती है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए।” UPSC mains 2015
भारत-पाक रिश्तों की सच्चाई
1.सांस्कृतिक सबंध-
भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक तनाव के बावजूद सांस्कृतिक जुड़ाव कायम रहा है। क्रिकेट का हर मैच जश्न और जज्बात का तूफान बन जाता है। दोनों तरफ के लोग एक-दूसरे के गानों, फिल्मों और शायरी पर आज भी दीवाने हैं। सिख धर्म के अनुयायी भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में फैले हुए हैं, और करतारपुर साहिब कॉरिडोर जैसे धार्मिक स्थलों के जरिए दोनों देशों के बीच धार्मिक संवाद बढ़ा है। हिन्दू धर्म के अनुयायी पाकिस्तान में स्थित हिंगलाज देवी जैसे पवित्र स्थानों की यात्रा करते हैं, जबकि मुसलमान भारत में आगरा और दिल्ली में स्थित प्रमुख मस्जिदों और दरगाहों का दौरा करते हैं।
2.व्यापारिक सम्बंध-
द्विपक्षीय व्यापार स्वतंत्रता के बाद से ही अस्तित्व में है,भारत ने द्विपक्षीय व्यापार को और बढ़ावा देने के लिए कदम उठाया जब उसने 1996 में पाकिस्तान को एमएफएन का दर्जा दिया और 2000 के दशक की शुरुआत में व्यापार की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई हालांकि पाकिस्तान ने भारत को कभी यह दर्जा नही दिया है। भारत पाकिस्तान के बीच दो माध्यम है व्यापार के-पहला स्थलीय मार्ग , बाघा अटारी बॉर्डर से ट्रकों के माध्यम से। दूसरा समुंद्री मार्ग मुंबई से कराची के माध्यम से। पुलवामा हमले के बाद से दोनों देशों के बीच व्यापार आधिकारिक रूप से बंद है लेकिन third-party trade यानी तीसरे देशों (UAE, सिंगापुर, मलेशिया) के जरिए हो रहा है। थर्ड पार्टी ट्रेड का कोई सरकारी और सही आँकड़ा नही दिखता फिर भी कुछ इकोनॉमिस्ट के दावें है कि यह अप्रैल-जनवरी 2025 के दौरान 500 मिलियन डॉलर का रहा है,जो कि भारत के अंतराष्ट्रीय व्यापार के 1 प्रतिशत से भी कम है। भारत का वर्तमान अंतराष्ट्रीय व्यापार 500 बिलियन डॉलर का है और वही पाकिस्तान का करीब 85 बिलयन डॉलर। भारत के साथ जब आधिकारिक रूप से व्यापार चालू था तब भी दोनों देशों के बीच मात्र 2 बिलयन डॉलर का व्यापार होता था । अब आप अंदाजा लगा सकते है कि भारत अगर पाकिस्तान से सब नाते तोड़ भी लेता है तो फर्क दोनों पर कुछ खास नही पड़ेगा।
3.कूटनीतिक या राजनीतिक सम्बंध-
विभाजन के बाद से अब तक लगभग 77 वर्षो की जर्नी में भारत ने हमेशा ही पाकिस्तान से शांति और सहयोगात्मक रिश्ते चाहा है। विभाजन के बाद नेहरू सरकार ने गांधीजी के आग्रह पर 550 मिलियन रुपये पाकिस्तान को ट्रांसफर किया था । युद्धों के बाद भी भारत ने पाकिस्तान के सैनिकों के साथ जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार सम्मानजनक व्यवहार किया। 1971 में 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों बंदियों को सुरक्षित लौटाया था(शिमला कन्वेंशन के तहत)। 1996 में पाकिस्तान को MFN (Most Favoured Nation) का दर्जा दिया था व्यापार में,भले ही उसने कभी नही दिया। 2005 में POK में भूकंप के बाद भारत ने पाकिस्तान को 25 मिलियन डॉलर (लगभग 110 करोड़ रुपये) की सहायता की पेशकश की थी, मेडिकल टीम भेजी तथा राहत सामग्री पहुंचाई। 2010 में पाकिस्तान में आई भीषण बाढ़ के बाद, यूरोपीय संघ ने पाकिस्तान को 75 उत्पादों पर शुल्क-मुक्त निर्यात की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा था, तो भारत उसका समर्थन किया था। भारत ने WTO में भी पाकिस्तान का समर्थन किया। मोदी सरकार ने भी अपने अंतराष्ट्रीय नीतियों के तहत शुरुआत में साथ लाने की बहुत प्रयास किया लेकिन परिणाम प्रभावी नही रहे।
एक सवाल की क्या पाकिस्तान ने भी भारत की कभी मदद की ?
इसका जवाब है कोई ठोस नही सिवाय सहानुभूति के। 2001 के भुज भूकम्प तथा 2013 के उत्तराखंड में बाढ़ के समय पाकिस्तान ने सहानुभूति दिखाई और शोक प्रकट किया हालांकि मदद की पेशकश भी की लेकिन भारत इससे इंकार कर दिया था। पाक ने, 2019 में करतारपुर साहिब कॉरिडोर को लेकर थोड़ी सहयोगात्मक भावना दिखाते हुए सहमति दिया किंतु आजादी के बाद से ही पाकिस्तान भारत से कभी भी जुड़ना नही चाहा ,उसने नेहरू जी के समय गुटनिरपेक्ष आंदोलन(NAM) का समर्थन तो किया लेकिन पलटी मारकर USA ब्लॉक में चला गया। वैश्विक मंचों पर अक्सर पाकिस्तान भारत का विरोधी ही रहा है— जैसे कश्मीर मुद्दा, FATF में भारत के खिलाफ बोलना, OIC में कश्मीर का मुद्दा उठाना आदि। अब ऐसे में मन मे एक सवाल और उठता है कि इसका समाधान क्या हो सकता है।
क्या युद्ध ही समाधान है ?
विभाजन के बाद से कई युद्धों और संघर्षों ने इन दोनों देशों के बीच कड़ी दीवार खड़ी कर दी है। भारत के तमाम कोशिशों , कई सहायताएं , कई समझौते जैसे जेनेवा, शिमला, लाहौर आदि के बाद भी जब बात नही बन रही तो क्या युद्ध को एक विकल्प के रूप में देखें ? अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होता है, तो यह सिर्फ दो देशों का संघर्ष नहीं रहेगा — यह अमेरिका , चीन,रूस अफगानिस्तान, तथा कई मुस्लिम कंट्री और परमाणु सम्पन्न देशों को एक साथ ला सकता है जिसका नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल है क्योकि दोनों ही परमाणु सम्पन्न देश है। भारत और चीन के बीच लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में सीमा विवाद है। सीमा संघर्ष और भारत की रणनीतिक साझेदारी के कारण चीन भारत के खिलाफ हो सकता है। ऐतिहासिक रूप से कई मौके रहे हैं जब अमेरिका ने पाकिस्तान का समर्थन किया जैसे – 1965 के भारत पाक युद्ध, बंगलादेश मुक्ति युद्ध 1971 तथा 1990 के दशक में कश्मीर मुद्दे पर भी पाक के साथ रहा है। बाद में अमेरिका से रिश्ते मजबूत हुए लेकिन युद्ध के स्थिति में उसकी भूमिका को लेकर सन्देह है।क्योकि चीन से अमेरिका की सुपर पॉवर बनने की प्रतिस्पर्धा है टैरिफ वार के समय में अमेरिका पाकिस्तान को अपने पक्ष में लाने के लिए उसे मदद की पेशकश कर सकता है लेकिन खुलकर समर्थन नही करेगा। अफगानिस्तान में तालिबान का शासन, जो पाकिस्तान का करीबी सहयोगी है, भारत के लिए एक चुनौती हो सकता है। श्रीलंका और नेपाल जो सामरिक रूप से भारत के लिए महत्वपूर्ण है उनका भी भारत से थोड़ी बहुत मनमुटाव जरूर है। श्रीलंका लिट्टे (LTTE) और तमिल मुद्दे को लेकर , नेपाल कालापानी के मुद्दे को लेकर तथा बंगलादेश रोहिंग्या और इस्लाम मुद्दे को लेकर भारत से असंतोष जताते है। फिर भी अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होता है, तो कई देश भारत के पक्ष में आ सकते हैं। अमेरिका, फ्रांस, रूस, ऑस्ट्रेलिया, और जापान जैसे देश भारत का समर्थन कर सकते हैं। अमेरिका भारत को एक अहम साझेदार मानता है, जबकि रूस और फ्रांस लंबे समय से भारत के रक्षा सहयोगी रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया और जापान भी भारत के साथ मजबूत रिश्ते रखते हैं। इसके अलावा, यूरोपीय देश जैसे जर्मनी और ब्रिटेन भी भारत के पक्ष में हो सकते हैं, क्योंकि वे युद्ध नहीं चाहते, लेकिन भारत की स्थिति को सही मानते हैं। किंतु व्यवहारिक दृष्टिकोण तो यही कहता है कि युद्ध एक अंतिम विकल्प होना चाहिए।
समाधान की दिशा में एक नजर
भारत-पाकिस्तान के रिश्ते जटिल और संवेदनशील रहे हैं, और इस स्थिति में युद्ध कोई आदर्श समाधान नहीं हो सकता। दोनों देशों के बीच कई मुद्दे, जैसे कश्मीर, आतंकवाद, और सीमा विवाद, हमेशा तनाव का कारण रहे हैं, लेकिन युद्ध से केवल विनाश और अनगिनत मानव जीवन का नुकसान होगा। वैश्विक संदर्भ में भी, भारत के पक्ष में कई बड़े देश खड़े हो सकते हैं, लेकिन साथ ही युद्ध से दुनिया भर में अस्थिरता फैल सकती है। भारत पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी ठिकानों पर हमला कर सकता है, यदि उसे अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त हो। हालांकि, यह एक संवेदनशील और जोखिमपूर्ण कदम होगा, क्योंकि पाकिस्तान परमाणु शक्ति संपन्न देश है। ऐसे हमले के लिए भारत को प्रमुख देशों, जैसे अमेरिका, रूस, और यूरोपीय संघ, का समर्थन चाहिए होगा। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से समर्थन हासिल करना आवश्यक होगा, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की कार्रवाई को वैधता मिल सके। युद्ध का विचार एक अंतिम उपाय के रूप में रखा जा सकता है, लेकिन कूटनीति और संवाद से दोनों देशों के रिश्तों को सुधारने की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है।आतंकवाद को मुद्दा बनाकर अंतरराष्ट्रीय दबाव भारत-पाकिस्तान पर एक प्रभावी रणनीति हो सकती है।भारत द्वारा हाल ही में “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र में 9 आतंकी ठिकानों पर की गई सटीक और सीमित कार्रवाई ने एक नई रणनीतिक दिशा तय की है। इस ऑपरेशन ने भारत की “Zero Tolerance for Terror” नीति को मजबूत आधार दिया है। अमेरिका, फ्रांस और रूस जैसे देशों ने भारत की आतंकवाद विरोधी कार्रवाई को “आत्मरक्षा में उठाया गया आवश्यक कदम” बताया, जबकि चीन और OIC जैसे मंचों पर पाकिस्तान को अपेक्षित समर्थन नहीं मिला। इसके अलावा अमेरिका ने दोनों देशों को संयम बरतने का सलाह दिया है। इस ऑपरेशन के बाद सोशल मीडिया पर fake news और युद्ध की आशंका फैलाने वाले तत्व सक्रिय हो गए। भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि यह युद्ध नहीं बल्कि “Counter-Terror Precision Strike” था। इससे भारत की वैश्विक छवि और कूटनीतिक मजबूती बढ़ी है।
साथ ही, यह घटना साइबर वॉरफेयर और सूचना युद्ध के नए आयाम भी खोलती है — जहाँ सोशल मीडिया अब युद्ध का एक नया मोर्चा बन चुका है। ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान के भीतर दबाव बढ़ा दिया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में यह संदेश गया है कि भारत अब सिर्फ संवाद नहीं, ठोस जवाब भी देना जानता है।