द्वारा- सोनू कुमार तिवारी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय (HCU) के पास स्थित ‘कांचा गज बावली’ जनागल में पेड़ों की कटाई को लेकर छात्रों और पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल के लिए भूमि पर किसी भी प्रकार की गतिविधि (जैसे- निर्माण, कटाई व प्लोटिंग) पर स्थगन (stay) लगा दिया है. दरअसल तेलंगाना सरकार इस जमीन को आई टी और इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए इस्तेमाल करना चाहती है.
इस विवाद ने कई संवैधानिक, पर्यावरणीय और नैतिक प्रश्नों को जन्म दिया है, जो सिविल सेवा परीक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है.
संवैधानिक और कानूनी पहलू
भूमि का कानूनी स्वामित्व –
यह विवाद रहा है कि इस भूमि पर विश्वविद्यालय का अधिकार है अथवा राज्य सरकार का. विश्वविद्यालय एक केन्द्रीय संस्थान है और प्रोजेक्ट राज्य सरकार का है. राज्य सरकार द्वारा बिना उचित समन्वय के उस भूमि का उपयोग करना ‘संघीय ढ़ांचे और संस्थागत स्वायत्तता’ पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है. ध्यान देने योग्य बात यह है कि वर्ष 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा 2324 एकड़ भूमि यूनिवर्सिटी को आवंटित किया गया था, जिसमें 400 एकड़ भूमि भी शामिल है. हालाँकि विश्वविद्यालय के पास इसके स्वामित्व का कोई दस्तावेज नहीं है. तेलंगाना हाईकोर्ट ने इस 400 एकड़ भूमि को राज्य के अधीन माना है किन्तु अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. भूमि राज्य सूची का विषय है, लेकिन यदि उपयोग केन्द्रीय संस्थान के लिए होता है तो यह समवर्ती सूची का विषय बन जाता है.
संवैधानिक पहलू –
अनुच्छेद | विवरण |
अनुच्छेद 21 | जीवन का अधिकार में पर्यावरणीय अधिकार भी शामिल हैं |
अनुच्छेद 48 (A) | राज्य का कर्तव्य – पर्यावरण और वनों का संरक्षण |
अनुच्छेद 51 A (g) | नागरिक का कर्तव्य – प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना |
7 वीं अनुसूची | भूमि – राज्य सूची का विषय (लेकिन उसका उपयोग केन्द्रीय संस्था के लिए हो तो – समवर्ती सूची) |
अनुसूची 11 एवं 12 | पंचायतों को प्राप्त 29 विषयों में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विषय जैसे वानिकी, सामाजिक वानिकी, मृदा संरक्षण तथा जल संवर्धन जैसे कई कार्य दिए गए है |
नोट – न्यायिक सक्रियता – HCU विवाद की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने PLI के माध्यम से की. PLI न्यायिक सक्रियता का एक माध्यम है. यह मुद्दा न्यायिक सक्रियता से भी डिकोड हो सकता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने स्थलीय जाँच के लिए एक कमिटी को नियुक्त किया है. आमतौर पर यह कार्यपालिका का होता है.
Expected Questions
Mains
UPPSC 2022
न्यायिक सक्रियता का क्या अर्थ है? क्या आप मानते हैं कि इससे कार्यपालिका और विधायिका के कार्यों में हस्तक्षेप होता है? उदहारण सहित स्पष्ट करें
UPPSC 2021
न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रमण में क्या अंतर है? भारतीय सन्दर्भ में स्पष्ट करें.
UPSC 2015
भारत में पर्यावरण संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका पर चर्चा कीजिए. अपने उत्तर में प्रमुख न्यायिक निर्णय का उल्लेख कीजिए.
Prelims PYQ
UPPSC 2020
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए –
- न्यायिक सक्रियता का उद्देश्य मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है.
- भारत में न्यायपालिका जनहित याचिका (PLI) के माध्यम से कार्यपालिका और विधायिका को उत्तरदायी ठहराती है.
- न्यायिक सक्रियता संविधान की भावना के विपरीत है.
सही विकल्प चुनिए –
(a) केवल 1 और 2 (b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 (d) 1 , 2 और 3
Answer – (a)
प्रश्न 2. सुप्रीम कोर्ट द्वारा “पेड़ों की कटाई पर रोक लगाकर जाँच कमिटी बनाना” किस प्रकार की न्यायिक प्रवृत्ति का उदहारण है?
(a) न्यायिक निष्क्रियता (b) न्यायिक समीक्षा
(c) न्यायिक सक्रियता (d) न्यायिक स्वतंत्रता
Answer – (c)
विवाद के पर्यावरणीय पहलू –
(i) जैव विविधता का संकट –
विश्विद्यालय क्षेत्र को ‘ग्रीन लंग’ कहा जाता है. HCU का यह क्षेत्र अर्द्ध शुष्क पारिस्थितिकी क्षेत्र है, जहाँ पारिस्थितिकी तंत्र पहले से ही नाजुक है. कटाई से स्थानीय प्रजातियाँ विस्थापित होंगी. यह क्षेत्र एक प्रकार जैव-विविधता से भरा है जहाँ वनस्पति (flora) में नीम, बबूल, किट्टालू, पलाश के आलावा बांस और औषधीय पौधे भी हैं. जीव-जंतु (fauna) के अंतर्गत मोर, उल्लू, किंगफिशर, ग्रेटर कूकल, लैपविंग, ड्रोगोज की 100+ प्रजातियाँ दर्ज की गयी हैं. यह एक प्रकार का अर्बन Bio-Diversity Hotspot है. परिसर में झीलें, खुली चट्टानें, झाड़ियाँ, छोटी नदियाँ और नाले जैसी विविध पारिस्थितिक संरचनाएं है, जहाँ मधुमखियाँ एवं तितलियों की कई प्रजातियाँ निवास करती हैं.
(ii) पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन –
यह एक ऐसी नियामक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य किसी प्रस्तावित परियोजना पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्व आंकलन करते हैं. भारत में यह EIA अधिसूचना 2006 के तहत संचालित होती है जो पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 से जुड़ा है. HCU मामले में यह आरोप है कि प्रोजेक्ट के प्रस्ताव से पूर्व EIA नहीं किया गया. EIA प्रणाली की चुनौतियों में कुछ सरकारी संस्थानों को छूट देना, EIA रिपोर्ट तैयार करने वाली स्वतंत्र निकायों का न होना, जनता की राय न लेना आदि प्रमुख हैं.
(iii) पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 –
EPA 1986 भारत में पर्यावरणीय निधि का आधार स्तंभ माना जाता है. यह अधिनियम भोपाल गैस त्रासदी 1984 के बाद पारित किया गया.
उद्देश्य –
पर्यावरण (जल, वायु, भूमि) की गुणवत्ता बनाए रखना और सुधर करना.
मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न खतरों से जैविक और भौतिक पर्यावरण की रक्षा करना.
विशेषता –
पर्यावरण की व्यापक परिभाषा जिसमें वायु, जल, भूमि और जीवित प्राणियों सहित सभी जैविक और अजैविक तत्व शामिल हैं. यह कानून केंद्र सरकार को व्यापक शक्तियां देता है जिसके तहत वह पर्यावरण मानक तय कर सकती है. उद्योगों और परियोजनाओं और गतिविधियों को नियंत्रित कर सकती है. खतरनाक पदार्थों का निर्माण और भण्डारण तथा निपटान को विनयमित करने की छूट है. इसके तहत केंद्र सरकार उपनियम या अधिसूचनाएं भी जरी कर सकती है. जैसे – EIA 2006, वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स आदि. अधिनियम का उल्लंघन करने पर 5 वर्ष तक की सजा या 1 लाख तक जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है.
चुनौतियाँ –
केंद्र सरकार के पास अधिक अधिकार, जो कि संघीय ढांचा को प्रमाणित करता है.
इसके तहत स्थापित निकाय CPCB या SPcBs के पास पर्याप्त संसाधन और तकनीकि क्षमता की कमी
NGT के होने के बावजूद मामला का समय पर निपटारा नहीं हो पाता.
Prelims PYQ
UPSC 2011
प्रश्न – निम्नलिखित में से किस अधिनियम के अंतर्गत भारत सरकार को पर्यावरण की रक्षा और सुधार के लिए व्यापक शक्तियां प्राप्त हैं?
(a) वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम
(b) जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम
(c) पर्यावरण संरक्षण अधिनियम
(d) वन संरक्षण अधिनियम
Answer – (c)
UPPSC 2018
प्रश्न 2. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 किसघटना के बाद लागू किया गया था?
(a) चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना
(b) भोपाल गैस त्रासदी
(c) ओजोन परत क्षरण
(d) साइलेंट स्प्रिंग पुस्तक का प्रकाशन
Answer – (b)
UPPSC Mains
UPPSC 2020
प्रश्न 1. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए और इसके प्रभावशील कार्यान्वयन की चुनौतियों की चर्चा कीजिए-
निष्कर्ष –
हैदराबाद केन्द्रीय विश्विद्यालय (HCU) का भूमि विवाद केवल पेड़ों की कटाई या निर्माण का मसला नहीं है बल्कि यह न्हारत में ‘विकास बनाम पर्यावरण’, लोकतान्त्रिक भागीदारी और संवैधानिक मूल्यों की व्याख्या जैसे महत्वपूर्ण विमर्शों को उजागर करता है. इसलिए आवश्यकता है ऐसी नीति की जो विकास को केवल संरचनात्मक निर्माण नहीं बल्कि संवेदनशील पारिस्थितिकीयसंतुलन और लोकतान्त्रिक मूल्यों के साथ जोड़े.
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