विश्लेषण : विधानसभा चुनाव 2022

  • द्वारा – सुधांशु धर द्विवेदी

मेरे भाजपाई मित्र 4-1 की बंपर विजय की बधाई स्वीकार करें।निश्चय ही मेरे जैसे सोशल डेमोकेट्स को 5 राज्यों के नतीजों से बड़ा झटका लगा है। बीजेपी वाले मेरे दोस्त मज़ा ले रहे हैं…घर आकर मिठाई भेंट दे रहे हैं, जो नहीं आ रहे हैं वे फोन पर ही चाँप रहे हैं…. सारे ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल जो कह रहे थे उसे हम इस लिए नकार रहे थे क्योंकि सपा की सभाओं में अपार भीड़ आ रही थी और कुछ ग्राउंड रिपोर्टर इस भीड़ को परिवर्तन की भीड़ बताकर सत्ता परिवर्तन के प्रति बहुत आश्वस्त थे। ….किन्तु हुआ वही जिसकी आशंका थी…बीजेपी का ध्रुवीकरण, अपार धनबल , तंत्र का दुरुपयोग, सोशल इंजीनियरिंग, मोदी योगी मैजिक , राशन वगैरह मिलकर परिवर्तन कामना पर बहुत भारी पड़े। सपा गेनर रही है , उसकी औकात अब 20-22% वोट से बढ़कर 40% के करीब आ गयी है पर बढ़ी बीजेपी भी है। वह अब 45% पर आ गयी है जो उसके अजेय होते जाने का संकेतक है।योगी आदित्यनाथ इस सारे खेल के सबसे बड़े विजेता बनकर उभरे हैं, जिस तरह से पार्टी में उनको अपमानित करने, उनका कद घटाने का प्रयत्न हुआ और मोदी-शाह ने केशव प्रसाद मौर्य को बरक्स उठाने की कोशिश की उससे योगी कमजोर न होकर मज़बूत हुए। अब परिणाम आते ही योगी आदित्यनाथ को बीजेपी संसदीय दल का सदस्य बनाना यह संकेत है कि योगी को उच्चतम स्तर पर महत्व देने की शुरुआत होगी। वे आगे अमित शाह की राजनीति के आड़े आ सकते हैं। मायावती और बहुजन समाज पार्टी युग का अंत हो चुका है। मायावती ने अपने वोट बैंक को राष्ट्रपति बनने की लालसा में बेंच दिया है। इस बार दलितों ने बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट दिया। एन्टी इंकैबेंसी के बावजूद बीजेपी के वोट प्रतिशत में इसीलिए सुधार आया। फिलहाल कांग्रेस मुक्त भारत का लक्ष्य पूरा होते दिख रहा है यूपी छोड़कर वह हर जगह सत्ता की गंभीर दावेदार थी पर आश्चर्यजनक रूप से वह उत्तराखंड तक में हार गई। इसकी हर जगह वजह एक ही रही , कांग्रेस आलाकमान का ढीला ढाला रवैया। कांग्रेस को किसी भूपेश बघेल जैसे ओबीसी नेता को अपना चेहरा बनाकर आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है। हालाँकि प्रियंका गांधी यदि अपने लोकतांत्रिक अभियान को अगले 5 साल तक जारी रखने का धैर्य व माद्दा दिखा सकें तो वे यूपी में कांग्रेस को पुनर्जीवित कर सकेंगी।इस चुनाव की एक और बड़ी गेनर आप रही है। वह बहुत तेजी से मुख्य विपक्षी दल बनने की तरफ अग्रसर है, बगैर किसी जातीय समीकरण व सोशल इंजीनियरिंग के !…सिर्फ अपने काम के बल पर। लगता है कि जहाँ जहाँ राजनीतिक निर्वात होगा, आप के लिए जगह बनाने की गुंजाइश बनेगी।कुछ बड़े लूजर रहे हैं, जैसे कैप्टन अमरिंदर, नवजोत सिंह सिद्धू( इस आदमी से यह सीखा जा सकता है कि अच्छी भली पार्टी को नष्ट कैसे किया जा सकता है ), राकेश टिकैत , स्वामी प्रसाद मौर्य वगैरह। अखिलेश यादव भी लूजर नही कहे जा सकते क्योंकि करीब 100 सीट व 15% वोट बैंक उन्होंने बढ़ाया है और वे यूपी में विपक्ष की अकेली आवाज बनकर उभरे हैं। ….पर मैं उनसे कहना चाहूँगा कि उनको अपनी और अपनी पार्टी की छवि बदलनी होगी। 5 साल ई डी और सीबीआई के डर से घर बैठे रहना और आखिरी 3 महीने में ही सक्रियता दिखाना पर्याप्त नही है। उनको एक निडर योद्धा की तरह 5 साल सड़क पर लड़ाई करनी होगी, सामाजिक न्याय के लिए, साम्प्रदायिकता के खिलाफ ……उनको अन्य विपक्षी नेताओं से मिलकर मोदी के विकल्प को खड़ा करना होगा। यह विकल्प ओबीसी नेता ही हो सकता है। उनको तेजस्वी के साथ मिलकर उत्तर भारत मे एक मज़बूत सामाजिक न्याय फ्रंट खड़ा करना होगा। ….वे बगैर विचलित हुए आगामी संघर्ष के लिए तैयार हो पाते हैं या नही , इसी पर उत्तर भारत में विपक्ष का भविष्य टिका हुआ है।मेरा आशावादी मन आज विचलित है फिर भी मैं अपने प्रिय कवि वीरेन डंगवाल की एक कविता उद्धृत करना चाहूँगा , जो निकट भविष्य में चीजों के सही दिशा में जाने की दृढ़ आशा रखती है, मेरे वैचारिक साथी इससे प्रेरणा लें और धैर्य धारण करें-तहखानों से निकले मोटे-मोटे चूहेजो लाशों की बदबू फैलाते घूम रहेहैं कुतर रहे पुरखों की सारी तस्वीरेंचीं-चीं, चिक-चिक की धूम मचाते घूम रहेपर डरो नहीं, चूहे आखिर चूहे ही हैंजीवन की महिमा नष्ट नहीं कर पाएँगेयह रक्तपात यह मारकाट जो मची हुईलोगों के दिल भरमा देने का ज़रिया हैजो अड़ा हुआ है हमें डराता रस्ते परलपटें लेता घनघोर आग का दरिया हैसूखे चेहरे बच्चों के उनकी तरल हँसीहम याद रखेंगे, पार उसे कर जाएँगेमैं नहीं तसल्ली झूठ-मूठ की देता हूँहर सपने के पीछे सच्चाई होती हैहर दौर कभी तो ख़त्म हुआ ही करता हैहर कठिनाई कुछ राह दिखा ही देती हैआए हैं जब चलकर इतने लाख बरसइसके आगे भी चलते ही जाएँगेआएँगे उजले दिन ज़रूर आएँगे

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